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बड़ा है तो बेहतर है
  • October 16, 2021
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ऐड्वर्टाइज़िंग या विज्ञापन किसी भी उत्पाद की मार्केटिंग के लिए बहुत जरूरी टूल होता है। कंपनीयाँ अलग अलग तरह से ऐड्वर्टाइज़िंग करके अपने ग्राहकों का ध्यान आकर्षित कर अपने उत्पाद के बारे में बताती है।

एडिडास (Adidas) ने इसी क्रम में Outdoor Network के साथ एक अनोखा विज्ञापन किया। कंपनी ने एक 68 मीटर x 36 मीटर की आउट्डोर साइट प्लान किया जो जोहान्सबर्ग के दक्षिण-पश्चिम में सोवेटो की सीमा पर, Nasrec में FNB स्टेडियम के पास आउटडोर नेटवर्क की प्रतिष्ठित कूलिंग टॉवर साइट साइट थी। ये साइट बहुत दूर से देखी जा सकती है।

Adidas ने 2004 में ‘असंभव कुछ भी नहीं है’ (Impossible is Nothing) कैम्पेंन शुरू किया था जो फिर से इस साल के शूरु में लॉन्च किया।

इसके बारे में कंपनी के वरिष्ठ ब्रांड निदेशक केट वुड्स ने कहा “इस चित्र में जाने-माने दक्षिण अफ्रीकी एथलीट और निर्माता थुलानी हलत्सवायो, सिया कोलिसी (Siya Kolisi), वेयडे वैन नीकेर्क, ज़िन्हले नदावोंडे, अनुरुने वेयर्स, थेबे मगुगु और डी कोआला शामिल हैं। ये वो लोग है जिन्होंने असंभव लगने वाली बाधाओं को पार कर उच्चतम स्तर पर आगे बढ़ने और सफलता हासिल करने के लिए प्रेरणा दिया है। हमारा इरादा ‘असंभव कुछ भी नहीं है’ टावर के लिए आशा की किरण बनना है, जब सपने कड़ी मेहनत और समर्पण से मिलते हैं, तो कुछ भी संभव है। टॉवर जैसी शानदार साइटें स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं और उनके अद्वितीय वातावरण, आकार और पैमाने के माध्यम से ब्रांडों और अभियानों की स्थिति और छवि को ऊंचा करने की क्षमता होती है।” “इस तरह, इस तरह की प्रमुख साइटें अंततः ब्रांड मैसेजिंग को इस तरह से बढ़ा सकती हैं कि अन्य मीडिया प्रारूपों को हरा पाना मुश्किल हो।” इस साइट का डिजाइन जाने माने चित्रकार रसेल अब्राहम (Russell Abrahams) ने किया है।

प्रिन्ट और प्रिंटिंग का इतिहास
  • October 8, 2021
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क्या होता जब प्रिंटिंग का आविष्कार ही नहीं होता। ये संभव ही नहीं था कि प्रिटिंग का आविष्कार न हो। क्यूंकि प्रिंटिंग का प्रयारूप ही येसा है। छपाई, प्रिंटिंग या मुद्रण से अर्थ है कि किसी भी मूल प्रति का छाया प्रति। अब ये प्रति या कॉपी कैसे बनाया जाए जो हूबहू वैसा ही हो जैसा की मूल प्रति। इसी प्रश्न के उत्तर की खोज हमें 3500 ईसा पूर्व ले जाती है जब सुमेरियन सभ्यताओं ने मिट्टी में लिखे दस्तावेजों को प्रमाणित करने के लिए सिलेंडर सील का इस्तेमाल किया। मगर आधुनिक युग में छपाई का आविष्कार 200 ई. के आस पास चीनीयों को जाता है। जिन्होंने लकड़ी पर चित्र या शब्दों को उकेर कर उनपर स्याही लगा कर उससे प्रतिलिपि तैयार की। ये हो सकता है कि सबसे पहले ये प्रिन्ट कपड़ों पर चित्रकारी करने के लिए हो। चित्र बनाने के लिए स्टेन्सिल का प्रयोग होता होगा। स्टेन्सिल में एक लकड़ी के सपाट हिस्सों पर उल्टी प्रतिलिपि (mirror image) को उकेर कर उसपर स्याही लगाकर कपड़े पर प्रेस किया जाता है। इस क्रम में सन् 105 टस्-त्साई लून ने कपास एवं सलमल की सहायता से कागज का आविष्कार किया था। जिसका प्रिंटिंग या मुद्रण कार्य में बहुत जरूरत था। चीन में सन् 712 ई. में ब्लॉक प्रिंटिंग की शुरुआत हुई। ये अब भी बहुत प्रचिलित है और भारत से ले कर यूरोप तक या यूँ कहें की पूरी दुनिया में अभी भी ये विधि प्रयोग में लाई जा रही है। चीन में ही सन् 650 ई. में हीरक सूत्र नामक संसार की पहली मुद्रित पुस्तक प्रकाशित की गयी। इस ग्रंथ की एक प्रति बीसवीं सदी में मिली थी जो सन् 868 में छपी हुई है। सन् 1041 ई. में चीन के पाई शेंग नामक व्यक्ति ने चीनी मिट्टी की मदद से अक्षरों को तैयार किया। इन अक्षरों को आधुनिक टाइपों का आदि रूप माना जा सकता है। चीन में ही दुनिया का पहला मुद्रण स्थापित हुआ, जिसमें लकड़ी के टाइपों का प्रयोग किया गया था। आधुनिक तकनीक में भी इसी तरह होता है मगर प्रौद्योगिकी ने इस काम को अधिक शुगम, सरल और व्यापक बना दिया है।

भारत में ये मुद्रण या छपाई बहुत बाद में शुरू हुआ। उसका कारण था भारत में शिक्षा का रूप। भारत में गुरु शिष्य परंपरा थी जिसमें गुरु अपने शिष्यों को बोल कर वेद आदि कंठस्थ करते थे। जब लिपि का आविष्कार हुआ तो ताड़पत्रों और भोजपत्रों पर लिखने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। मगर उसमें भी लिख कर ही रखा जाता था उसकी प्रतिलिपि भी लिख कर ही बनाई जाती थी छाप कर नहीं।

अब प्रश्न आता है कि छपाई या मुद्रण का लाभ आम जन को कब हुआ। आम जन जो छपा हुआ देखते है, वह यहाँ तक पहुंचने के लिए बहुत सा आविष्कार होना बाकी था। इस क्रम में ये जानना जरूरी है कि आधुनिक छपाई की शुरुआत कैसे हुआ। जब ये कला चीन से यूरोप पहुंचा तो उसपर व्यापक शोध हुआ। यूरोप में उससे पहले हाथ से चित्रकारी ही माध्यम हुआ करता था। जब यूरोप को ये पता चला की इस तरह भी चित्रों की प्रति बनाई जा सकती है तो उन्होंने उसपर शोध किया और छपाई को अगले पायदान पर ले गए। जो कला चीन से आई थी उसमें बहुत सी कमिया थीं जैसे स्पष्टता। छपाई केवल उन चीजों का होता था जो बड़े होते थे या जिनमें बारीकियाँ काम होती थीं। बारीक या छोटे अक्षर या चित्र में स्पष्टा की कमी थी। इसके अलावा समय भी बहुत लगता था। लागत भी अधिक लगती थी। इसी क्रम में मशीन के रूप में आविष्कार हुआ टाइप्राइटर का।


Pic by : www.britannica.com

टाइप्राइटर का आविष्कार आधुनिक प्रिंटिंग या छपाई का महत्वपूर्ण भाग है। ये आविष्कार और महत्वपूर्ण तब हो जाता है जब इसका प्रयोग समझ में आता है। टाइप्राइटर का प्रयोग लेटर या डाक्यूमेन्ट को स्पष्ट और अधिक तेजी से लिखने के लिए होता है। इसमें अक्षर एक मशीन पर लगे होते है जो उगलियों से प्रेस या दबाने पर कागज पर छाप जाते है। प्रश्न ये भी उठता है की ये छपाई के साथ कैसे संबंध रखता है। जैसा की मैं पहले भी लिख चुका हूँ कि छपाई किसी भी छपी या बनी हुई चित्र या अक्षर का हुबहु दूसरा छायाप्रति (कॉपी) बना देना होता है। इस तरह टाइप्राइटर भी यही कार्य करता है। टाइप्राइटर का आविष्कार 19वीं सदी में जर्मनी के विलियम ऑस्टिन बर्ट (William Austin Burt) ने किया था। जो टाईपोग्राफर (Typographer) के नाम से जाना जाता है। मगर इसमें यांत्रिक (technical) परेसानी थी। ये बहुत धीरे लिखती थी। इसके बाद 1865 में डेनमार्क के रासमस मल्लिँग-हँसें (Rasmus Malling Hansen) नाम के व्यक्ति ने शोध कर के हँसें राइटिंग बॉल (Hasnen Writing Ball) नाम के टाइप्राइटर का आविष्कार किया था। जिससे ऑफिसों में टाइप्राइटर का सही से प्रयोग होने लगा। टाइप्राइटर तो बन गया मगर इसमें बहुत से संशोधन होना बाकी था जिसमें कीबोर्ड बहुत महत्वपूर्ण था। कभी सोचा है कि कीबोर्ड में अक्षर उलटे सीधे जगह पर क्यूं लगे हैं? इसका कारण है कि जो अक्षर ज्यादा प्रयोग में आते है उनको बीच में और बाकी को उसी क्रम में लगाया गया है। जैसे इंग्लिश में सबसे ज्यादा प्रयोग J और F शब्द का होता है। जो आज हम टाइप्राइटर या कंप्युटर कीबोर्ड देखते है उसको क्वर्टी लेआउट कहते है।

पहली प्रिंटिंग मशीन
छपाई की प्रेस की रचना सबसे पहले जर्मनी के जोहान गुटेनबर्ग (Johann Gutenberg) ने सन 1439 में की थी। काठ के टुकड़ों पर उन्होंने उल्टे अक्षर खोदे। फिर उन्हें शब्द और वाक्य का रूप देने के लिए छेद के माध्यम से परस्पर जोड़ा और इस प्रकार तैयार हुए बड़े ब्लाक को काले द्रव में डुबाकर पार्चमेंट पर अधिकाधिक दाब दिया। इस प्रकार मुद्रण में सफलता प्राप्त की। इनके इस आविष्कार का यूरोप में बहुत स्वागत हुआ।

इसके बाद जो प्रिंटिंग मशीन आई उसमें टाइप्राइटर की तरह ही अक्षर होते थे। अंतर यह था कि टाइप्राइटर में वो एक लिवर पर होते थे मगर मशीन के मास्टर में अलग अलग और एक ही अक्षर के कई प्रति होती थी। जब एक वाक्य लिखना होता था तो एक एक अक्षर को एक लाइन में लगा कर एक साथ रखा जाता था। बाद में उसको मशीन पर लगा कर उसपर दाब लगाकर कॉपी छाप ली जाती थी। इस मशीन के आविष्कार आ जाने से छपाई ना केवल सुविधाजनक हो गया बल्कि समय और लागत दोनों काम हो गए। इस मशीन से फोटो भी अधिक साफ और सुंदर छपने लगा। भारत में इसे ट्रेडील मशीन के नाम से भी जाना जाता है। इस मशीन के आ जाने से समाचार पत्र, फ़ॉर्म, प्रचार सामग्री, डिब्बे आदि छपने में व्यापक बदलाव आ गए। इस बदलाव में समाचार पत्र बहुत जरूरी और महत्वपूर्ण था। प्रचार सामग्री का असर भी आप बहुत अच्छी तरह से समझ सकते है।

लिथोग्रफिक से ही आफसेट प्रिंटिंग का विकास हुआl आफ़सेट प्रिटिंग क्या होती है पहले उसको समझना जरूरी है। ऑफ्सेट प्रिंटिंग अगला विकास था प्रिंटिंग मशीन का। इसमें एक प्लेट पर छपने वाला डिजाइन या अक्षर कंप्युटर से बना देते है ये टीईपोग्राफ से बहुत अलग होता है जैसे नीचे चित्र में देख रहा है।

इसकी मशीन बहुत बड़ी होती है इसमें कागज पर प्रिटिंग बहुत अच्छी, बहुत तेज और बहुत साफ हो जाती है। ये आधुनिक समय में बहुत महत्वपूर्ण है। इसका आविष्कार रॉबर्ट बार्क्ले ने जो की इंग्लैंड के रहने वाले थे ने टिन पर प्रिन्टिंग का विकास किया। जिसको बाद में 1904 में संयुक्त राज्य के वाशिंगटन रुबेल ने कागज पर मुद्रण के लिये ऑफसेट मुद्रण का विकास किया।

इसी तरह आगे छपाई मशीन पर शोध होते गए और ये ब्लैक एण्ड व्हाइट से कलर हो गया। आज आधुनिक छपाई में बहुत से विधि और साधन का प्रयोग हो रहा है। आधुनिक छपाई की नीव जॉन गुटेनबर्ग ने ही सन् 1454 ई. में रखी थी। दुनिया का पहला छापाखाना (प्रिंटिंग प्रेस) पेरिस में लगा था। जिसपर सबसे पहले बाइबल छापा गया था। और इस तरह सबसे पहली छपने वाली किताब बाइबिल हो गई। जॉन गुटेनबर्ग के प्रिंटिंग प्रेस में एक बार में 600 प्रतियाँ तैयार की जा सकती थी।

बाद में ये जर्मनी से निकालकर अन्य देशों में गई। उस समय कोलने, आगजवर्ग बेसह, टोम, पेनिस, एन्टवर्ण, पेरिस आदि मुद्रण के प्रमुख केंद्र थे। सन् 1475 में सर विलियम केकस्टन के प्रयासों से ब्रिटेन में पहला प्रेस स्थापित हुआ। ब्रिटेन में राजनैतिक और धार्मिक अशान्ति के कारण प्रेस सरकार के नियंत्रण में था। इसे स्थापित करने के लिए सरकार से इजाजत लेली होती थी।

जब मुद्रण की शुरू हुआ तो सबसे ज्यादा धार्मिक ग्रंथ छपा। भीम जी पारेख प्रथम भारतीय थे, जिन्होंने दीव में सन् 1670 ई. में एक उद्योग के रूप में प्रेस शुरू किया। पादरी जेसे ग्लोभरले ने सन 1638 ई. में अमेरिका में प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत करने की कोशिश की मगर उनकी मृत्यु मशीन ले जाते समाय जहाज में ही हो गई। बाद में उनके सहयोगी म्याश्यु और रिटेफेन डे ने उक्त काम को सम्पन्न किया।

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